पहलगांव की घटना आज के भारत की आत्मा को झकझोर देने वाला उदाहरण है।
जहां कभी घाटियों में शांति की सरगम गूंजती थी, वहीं अब मानवता की चीखें सुनाई देती हैं।
यह कोई सीमापार हमला नहीं था — यह हमला था धर्म के नाम पर पाले गए कट्टर सोच का, जो आज हमारी ही जमीन पर हमारी ही संस्कृति का गला घोंट रही है।
धर्म क्या था, और अब क्या बन गया?
धर्म को मानव जीवन की आचार-संहिता माना गया था —
वो जो जीवन को अनुशासित करे, प्रेम सिखाए, संयम दे।
लेकिन कलयुग में धर्म को एक ‘शो-पीस’ बना दिया गया,
जहां आस्था की जगह अहम, और ज्ञान की जगह प्रदर्शन ने ले ली है।
ये लोग कौन हैं?
ये भी हमारे जैसे इंसान हैं,
पर इनकी बुद्धि की कोडिंग कुछ और ही है।
इनके भीतर बस एक लाइन बार-बार लिखी गई है:
“जो तुम्हारे धर्म को न माने, वो तुम्हारा दुश्मन है।”
इस कोडिंग के पीछे काम करते हैं कुछ बुद्धिजीवी कट्टरपंथी,
जो पैसा और भ्रम देकर बेरोजगार युवाओं के मन में नफरत भरते हैं।
जब हमला होता है, तो ये फक्र से जिम्मेदारी लेते हैं,
ना कि इंसाफ के लिए, बल्कि बस अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए।
अगर इन्हें असुर कहा जाए, तो भी कम है…
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सतयुग में असुरों और देवताओं की लड़ाई थी, पर मकसद था अमृत पाना — और उससे अच्छा भी मिला।
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त्रेता युग में राम-रावण युद्ध से मिला रामायण जैसा अमर ग्रंथ।
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द्वापर में कुरुक्षेत्र से मिली भगवद गीता।
हर युग की लड़ाई ने कुछ अमूल्य ज्ञान दिया।
लेकिन इस कलयुग की लड़ाई का मकसद क्या है?
सिर्फ “मैं ही श्रेष्ठ हूं” यह सिद्ध करना, और बाकी सबको मिटा देना।
यह लड़ाई तब तक नहीं रुकेगी जब तक हम मूल कारण पर प्रहार नहीं करेंगे —
जहां बच्चों को यह सिखाया जा रहा है कि दूसरा धर्म = दुश्मन।
समाधान क्या है?
इस लेख के माध्यम से मैं यह कहना चाहता हूं:
विचारधारा में परिवर्तन अनिवार्य है।
और यह परिवर्तन तभी संभव होगा, जब ये “कोडिंग स्कूल” बंद होंगे,
जो धर्म की आड़ में नफरत का पाठ पढ़ा रहे हैं।
पहलगांव घटना से कुछ सिख
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भारत में शिक्षा प्रणाली एक हो।
धर्म के आधार पर अलग-अलग शिक्षा पद्धतियां समाज को तोड़ती हैं। -
धर्म और पंथ व्यक्तिगत आस्था का विषय बने रहें।
प्रदर्शन से प्रतिस्पर्धा शुरू होती है, और ऐसी प्रतिस्पर्धा जो मानवता की हत्या कर दे —
वो कभी स्वीकार्य नहीं हो सकती।
अंतिम पंक्तियाँ:
जो मानवता के खिलाफ है, वह कोई धर्म नहीं — वह अधर्म है।
और जो उस अधर्म के खिलाफ खड़ा नहीं होता, वह भी उसी अधर्म का हिस्सा है।