स्वयं के राम से स्वयं के रावण का दहन #Dussehra #SelfReflection #Ravana #Vijayadashami2024

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विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। यह पर्व रावण के पुतले के दहन के रूप में मनाया जाता है, जो प्रतीक है रावण के अहंकार और बुराई का अंत करने का। लेकिन क्या रावण वास्तव में केवल बुराई का प्रतीक था, या उसमें कुछ अच्छाइयाँ भी थीं?

रावण: बुराई या विद्वान?

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रावण, जिसे दशानन कहा जाता है, एक अत्यंत विद्वान ब्राह्मण था, जो शिव भक्त था और अपनी तपस्या से शिव की कृपा प्राप्त कर चुका था। उसकी शिव साधना और शक्तियाँ इतनी प्रबल थीं कि उसने ग्रहों को अपने वश में कर लिया था। उसकी विद्वता इतनी महान थी कि राम ने स्वयं उसे यज्ञ संपन्न करने के लिए आमंत्रित किया था, जब राम सेतु का निर्माण हो रहा था।

रावण की एक जटिल व्यक्तित्व थी—वह एक ज्ञानी था, लेकिन उसका अहंकार उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गया। उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया, और यही उसकी हार का कारण बना।

रावण दहन: परंपरा या मनोरंजन?

आज के समय में, दशहरा 2024 और विजयादशमी का मतलब मात्र रावण दहन देखना या एक-दूसरे को बधाई देना रह गया है। लोग रावण दहन को एक खेल या मनोरंजन के रूप में देखने लगे हैं। लेकिन क्या हम अपने बच्चों को यह सिखाते हैं कि रावण सिर्फ बुराई का प्रतीक नहीं था, बल्कि उसकी अच्छाइयाँ भी थीं?

रावण दहन केवल एक प्रतीक है, लेकिन हमें इस प्रतीक से सीखने की आवश्यकता है। रावण दहन का असली अर्थ है अपने भीतर के रावण, यानी अहंकार, लोभ, और बुराई का अंत करना। विजयादशमी का संदेश है कि हम अपने भीतर के राम रूपी गुणों को जगाएं और रावण रूपी अवगुणों को समाप्त करें।

अपने भीतर के राम और रावण को पहचानें

आजकल हममें से कई लोग किसी न किसी रूप में अहंकार से ग्रसित होते हैं—चाहे वह शारीरिक शक्ति हो, राजनीतिक शक्ति, या धन बल। यह वही अहंकार है, जो रावण के विनाश का कारण बना। रावण ने अपने शक्ति के अहंकार में शिव पार्वती सहित कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश की थी। लेकिन, क्या हमारा अहंकार भी उतना ही खतरनाक नहीं है?

रावण में बुराइयाँ थीं, लेकिन उसने सीता माता के प्रति कभी अपमानजनक व्यवहार नहीं किया। उसने सीता को अशोक वाटिका में रखा, लेकिन कभी उनके निकट नहीं गया। यह हमें सिखाता है कि किसी की बुराई को नकारते समय उसकी अच्छाइयों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

आज का रावण: कहीं अधिक खतरनाक

आज के युग में रावण के अवगुण कहीं अधिक घातक हो चुके हैं। समाज में कई ऐसे लोग हैं जो ऊपर से राम जैसे दिखते हैं, लेकिन भीतर से रावण के समान बुराई से भरे होते हैं। हमारे आस-पास के कुछ आध्यात्मिक गुरु भी इस बुराई के शिकार हो चुके हैं, जो अपने अनुयायियों के साथ कुकर्म करते हैं और जेल की सलाखों के पीछे हैं।

इसलिए, विजयादशमी का असली संदेश है कि हम अपने भीतर की बुराइयों का दहन करें।

स्वयं का रावण दहन कैसे करें?

रावण दहन के बाद, आप अपने घर के किसी शांत स्थान पर बैठें, और अपने जीवन की अच्छाइयों और बुराइयों पर चिंतन करें। एक गिलास पानी रखें और अपनी आंखें बंद कर, अपने भीतर के राम और रावण को पहचानें।

  1. अपने जीवन में किए गए अच्छे कर्मों को याद करें—एक पुत्र, भाई, पति, या पिता के रूप में।
  2. फिर, उन बुराइयों को सोचें, जो किसी कारणवश आपसे हो गई हों—अहंकार, क्रोध, लोभ या किसी अन्य प्रकार की नकारात्मकता।
  3. अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करें और 11 बार गहरी सांस लें और छोड़ें। यह प्रक्रिया तीन बार दोहराएं।
  4. कुछ देर शांति से बैठें, आंखें खोलें, पानी पिएं, और स्वयं को विजयादशमी की बधाई दें।

निष्कर्ष

विजयादशमी केवल रावण दहन का पर्व नहीं है, बल्कि यह पर्व हमें आत्मचिंतन करने का मौका देता है। दशहरा हमें सिखाता है कि हमें अपने भीतर के रावण का दहन करना चाहिए और राम के गुणों को आत्मसात करना चाहिए। आइए, इस विजयादशमी पर हम अपने भीतर की बुराइयों का दहन करें और अपने राम रूपी गुणों को जाग्रत करें।

“स्वयं के राम से स्वयं के रावण का दहन करें और विजयादशमी के असली अर्थ को समझें।”


लेखक: कृष्णा गुरुजी

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