
कलयुग की गुरुपूर्णिमा : दिल को छूने वाला संदेश
गुरुपूर्णिमा कोई साधारण दिन नहीं। यह वो पल है जब मनुष्य, अपने जीवन के उन अनमोल पलों को याद करता है, जहाँ किसी ने उसका हाथ थामा, उसे रास्ता दिखाया, और उसे एक बेहतर इंसान बनने की ओर बढ़ाया।
गुरुपूर्णिमा : अतीत की परंपरा, आज की जरूरत
प्राचीन भारत में गुरुकुल केवल शिक्षा का केंद्र नहीं था, बल्कि वह एक संस्कार शाला था, जहाँ राजा और रंक एक ही छत के नीचे बैठकर विद्या सीखते थे। वहाँ कोई अमीर-गरीब का भेद नहीं था। सांदीपनि आश्रम इसका सबसे सुंदर उदाहरण है, जहाँ भगवान कृष्ण और सुदामा एक ही कक्षा में बैठे थे।
गुरुकुल छोड़ते समय माता-पिता बच्चों से कहते थे –
“अब से तुम्हारे गुरु ही माता, पिता, बंधु और सखा हैं।”
क्या आज हम ऐसा कह सकते हैं? क्या आज कोई बच्चा अपने गुरु पर इतना विश्वास करता है? या कोई गुरु आज अपने शिष्य को इतनी निस्वार्थ दृष्टि से देखता है?
गुरुपूर्णिमा का आज का रूप
आज के कलियुग में, गुरुपूर्णिमा कई जगह सिर्फ एक सोशल मीडिया पोस्ट बनकर रह गई है। लोग पोस्ट डालते हैं:
“गुरुपूर्णिमा की शुभकामनाएँ”
और नीचे अपना नाम, परिवार, बिजनेस या यूट्यूब चैनल का लिंक जोड़ देते हैं। पर कोई नहीं सोचता कि जिस गुरु की बात कर रहे हैं, उसके लिए क्या कभी एक पल का समय भी निकाल पाए हैं?
पहले ज्ञानी होना था जरूरी, अब धनी होना जरूरी है
पहले, गुरु के नजदीक जाने के लिए ज्ञानी होना जरूरी होता था। गुरु उन्हीं को अपनाते थे जिनमें विनम्रता, सीखने की प्यास और खुद को बदलने की ताकत होती थी।
आज के कलियुग में गुरु के पास जाने के लिए धनी होना जरूरी हो गया है। गुरु भी अब मार्केटिंग टीमें रखते हैं, जो नए-नए अमीर शिष्य तलाशती हैं। यहाँ तक कि जेबकतरे और चोर भी बड़े गर्व से कहते हैं –
“मेरे गुरु ने ही मुझे जेब काटना सिखाया।”
सोचिए, कहां चला गया वो गुरु-शिष्य का पवित्र रिश्ता?
गुरु के विभिन्न रूप
गुरु केवल वही नहीं जो गद्दी पर बैठे। हमारे जीवन में कितने ही गुरु होते हैं –
- माँ, जो पहली सीख देती है – “सच बोलना, किसी का दिल मत दुखाना।”
- पिता, जो बताता है – “मुश्किलों से मत डर, उनका सामना कर।”
- शिक्षक, जो हमें पढ़ाते हैं – परिभाषाएँ, सूत्र और जीवन के नियम।
- बंधु, जो व्यावहारिक जीवन सिखाते हैं।
- मित्र, जो कई बार बिना कहे हमारे दुख का हल बता देते हैं।
पर इनमें भी सबसे अनमोल होता है सद्गुरु – जो कहता है –
“डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम गिरोगे तो उठाऊँगा। भटकोगे तो रास्ता दिखाऊँगा।”
कलियुग में गुरुपूर्णिमा कैसे मनाएँ?
गुरुपूर्णिमा को सच्चा उत्सव बनाना है तो यह करें –
- सुबह उठकर स्नान करिए, अपने इष्ट के आगे बैठ जाइए।
- आँखें बंद कर सबसे पहले अपनी माँ को याद कीजिए। सोचिए, उनसे आपने क्या सीखा।
- फिर अपने पिता को याद करिए, उनके दिए जीवन-पाठ को सोचिए।
- फिर उन शिक्षकों, रिश्तेदारों, मित्रों को याद कीजिए, जिनसे आपने कुछ सीखा।
- उन लोगों को याद कीजिए जिन्होंने आपके कठिन समय में हाथ थामा।
- संभव हो तो उन्हें फोन कीजिए, बस इतना कह दीजिए – “धन्यवाद! आपने मुझे संभाला, आपने मुझे सिखाया।”
- और सबसे बड़ा सवाल अपने आप से पूछिए –
“क्या मैंने जो सीखा, उसे अपने जीवन में उतारा है?”
तीन सबसे दुर्लभ चीजें
आज के युग में ज्ञान की कमी नहीं, बल्कि ज्ञान का शोर इतना ज्यादा है कि सच्चा ज्ञान कहीं खो गया है। हर कोई गुरु बना बैठा है, हर कोई ज्ञानचंद है। पर तीन चीज़ें आज भी दुर्लभ हैं –
- मानव जीवन का मिलना – जो करोड़ों योनियों के बाद मिलता है।
- सच्चे गुरु से कुछ ज्ञान की बातें सुनने का अवसर।
- सीखे हुए ज्ञान को अपने जीवन में उतारना।
यह तभी संभव है, जब हम समर्पण करना सीखें। एकलव्य इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उसने बिना गुरु के प्रत्यक्ष सान्निध्य के भी, द्रोणाचार्य को गुरु मानकर सीखा और पूरी निष्ठा से ज्ञान को अपने जीवन में उतारा। यही है सच्ची गुरु-दक्षिणा।
गुरुपूर्णिमा का अंतिम संदेश
गुरुपूर्णिमा कोई कैलेंडर की तारीख नहीं। यह वो पल है, जब तुम अपने दिल में झाँककर कहते हो –
“हे गुरु, मैं तुम्हारा ऋणी हूँ।
तुमने मुझे चलना सिखाया,
तुमने मुझे लड़ना सिखाया,
तुमने मुझे हँसना सिखाया,
तुमने मुझे गिरकर फिर खड़ा होना सिखाया।
तुमने मुझे बताया – डर मत, तेरा हाथ थामने मैं हमेशा रहूँगा।”
गुरुपूर्णिमा केवल पोस्ट नहीं है। गुरुपूर्णिमा है – अपने विवेक रूपी गुरु से अपनी इंद्रियों पर विजय पाना। गुरुपूर्णिमा है – उन सबको धन्यवाद देना, जिन्होंने हमें थोड़ा भी बदलने में मदद की। गुरुपूर्णिमा है – सीखे हुए ज्ञान को अपने जीवन में जी लेना।
आज इस गुरुपूर्णिमा विशेष पर संकल्प लें –
“गुरु-भाव और शिष्य-भाव को जीवन के अंतिम क्षण तक जीवित रखेंगे। और उन सभी को धन्यवाद कहेंगे, जिन्होंने हमें कुछ सिखाया – चाहे वह माता-पिता हों, शिक्षक हों, मित्र हों, या स्वयं जीवन के अनुभव।”
यही है कलयुग की सच्ची गुरुपूर्णिमा।
वेदव्यास जी का श्लोक
व्यासो गुरुः सर्वविद्यानां, विश्वं व्याप्तं येन चराचरम्।
नमामि तं जगद्व्यापं, व्यासं परमगुरुम् ॥
गुरुपूर्णिमा पर विशेष वीडियो देखें
गुरुपूर्णिमा पर और जानिए कृष्णा गुरुजी से इस वीडियो में (57:30 मिनट पर विशेष अंश देखें):
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