स्वयं के राम से स्वयं के रावण का दहन

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“स्वयं के राम से स्वयं के रावण का दहन”वर्षों पुरानी परंपरा विजयादशमी पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के लिये मनाया जाता है।
शास्त्र कहते है कि रावण का दाह संस्कार नहीं हुआ था।इसी लिए रावण का दहन करना एक परंपरा बन गई।

इस कलयुग में रावण दहन मात्र एक खेल से बन गया है।अपने छोटे बच्चो को रावण दहन दिखाना मात्र मनोरंजन का साधन बन चुका है एवम राजनीति लोगो के लिए राजनीतिक अखाड़ा।

सब जानते है कि रावण एक  सर्व ज्ञानी ब्राह्मण था जो असुर वंश में पैदा हुआ था।पर अपनी शिव साधना से शिव तांडव रच शिव की असीम कृपा का पात्र बना
येह वही रावण है जिसने अपनी मंत्र शिव साधना से ग्रहों को अपने वश में किया। यहां तक राम सेतु के निर्माण के वक़्त राम द्वारा ब्राह्मण कार्य का आमंत्रण देने पर विधिवत पूजन भी  किया  किसी इंसान की मंशा एवम कर्म देखना चाहिए

रावण के जन्म के बारे में सबके अलग अलग मत है।एक सम्प्रदाय तो रावण को विद्याधर कहता है

आज के इस कल युग मे क्या विजयादशमी दशहरा का मतलब सिर्फ रावण दहन कर एक दूसरे को विजया दशमी की वधाई देना है ।आज के परिवेश में तो सिर्फ येह वधाई व्हाट्सएप्प फेसबुक की बली चढ़ गई है
क्या आपने बताया बच्चों को की रावण कौन था रावण की क्या अच्छाई थीं क्या बुराई थी।इंसान अच्छाई बुराई का मिला जुला पुतला है 
आज की इस युग मे जरूरी है अपने अंदर के राम रूपी गुण  एवम रावण रूपी  अवगुणों के चिंतन की।
इसी जन्म में आपकी शारीरिक वैचारिक क्रिया किसी रावण के अवगुणों से कम नही थी।या राम के गुणों समान
आज हमे स्वयं अधिकांश लोगी में कितना अहंकार रहता है अपनी शक्तियों पर वो भले  शारीरिक हो राजनीतिक हो या धन की हो।तो रावण भी कहा गलत था अगर उसे अहंकार था अपने तन बल धन बल पर इतना अहंकार की शिव पार्वती सहित कैलाश पर्वत को उठाने का साहस किया नारद के कारण।अहंकार भी था पर दुराचारी स्त्रियों के साथ नही  था इस लिए की उसने अपनी छाया भी सीता जी के करीब नही आने दी अशोक वाटिका में रखा
इस लेख के माध्यम से में येह बताना चाहता हु की आज के युग के रावण कही ज्यादा गुना बुराई युक्त है।बजाय उस युग के रावण के
बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में त्योहार मनाने वालो रावण की बुराई के साथ साथ उसकी अच्छाई पर भी ध्यान दो
एवम अपने अंदर की इस पल तक कि बुराई को दहन में जला अपनी अच्छाई की जीत रूपी विजया दशमी मना स्वयं को बधाई दे
आइये आज जरा इस युग के रावणो पर नज़र डालें कितने ही आध्यात्मिक संत अपने कुकर्मो से ईश्वर रूपी बन कन्याओं का शारीरिक शोषण कर कारावास में है
आज कितने ही अज्ञात रावण बुरी निगाहों के साथ समाज मे है पर ऊपरी मुखोटा राम का है।आप स्वयं जानते होंगे पर बोलने का साहस नही ।

अन्याय करना एवम अन्याय सहना दोनों बराबर है।अगर किसी की बुराई का बखान करते है तो  अच्छाई का भी करे  ।आज समय है कि सदियों से चली आ रही परम्परों  को एक नई सोच दे वरना आने वाला युवा इसे बदल देगा

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