आरती करते वक्त हाथ कैसे घुमाएं – कृष्णा गुरुजी की दृष्टि
श्रावण माह में शिवालयों और घर-घर में शिव आरती की गूंज सुनाई देती है। जगह-जगह रुद्राभिषेक के पश्चात आरती होती है। परन्तु एक सवाल अक्सर मन में उठता है — आरती करते समय हाथ किस क्रम में घुमाने चाहिए? क्या कोई सही तरीका है?
कृष्णा गुरुजी अपने ग्रंथ कलयुग पुराण में बताते हैं कि कलयुग में किसी भी देवी-देवता की आरती करते समय केवल दीप घुमाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उसके पीछे गहरा आध्यात्मिक विज्ञान छिपा है।
कृष्णा गुरुजी कहते हैं:
“आरती का अर्थ है – परमात्मा के समक्ष अपनी ऊर्जा समर्पित करना और उनके तेज को अपने भीतर आकर्षित करना। जब आप थाल घुमाते हैं, तो वह महज परंपरा नहीं, बल्कि शरीर के तीन प्रमुख चक्रों – आज्ञा, हृदय और नाभि चक्र – को ऊर्जावान करने की विधि है।”
आरती करने का सही तरीका – कृष्णा गुरुजी के अनुसार
जब भी आपको किसी भी भगवान की आरती करने का सौभाग्य मिले — चाहे वह शिव, विष्णु, या गणेश ही क्यों न हों — आरती इस प्रकार करें:
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आरती का थाल हाथ में पकड़ें।
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भगवान के तीन चक्रों पर ध्यान केन्द्रित करें:
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शिव की आरती कर रहे हैं, तो आज्ञा चक्र (भ्रूमध्य) पर ध्यान रखें।
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विष्णु की आरती करते समय हृदय चक्र पर ध्यान रखें।
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गणेश की आरती में नाभि चक्र पर ध्यान रखें।
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थाल को कुछ क्षण स्थिर रखें।
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दायें हाथ से इस क्रम में थाल घुमाएँ:
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शिव के लिए: आज्ञा चक्र → हृदय चक्र → नाभि चक्र → वापस आज्ञा चक्र
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विष्णु के लिए: हृदय चक्र → नाभि चक्र → आज्ञा चक्र → वापस हृदय चक्र
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गणेश के लिए: नाभि चक्र → हृदय चक्र → आज्ञा चक्र → वापस नाभि चक्र
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इस क्रम से थाल घुमाने पर, थाल की गति से हाथ में ‘ॐ’ (ओंकार) की आकृति बनती है।
कृष्णा गुरुजी कहते हैं:
“जब आरती करते समय ‘ॐ’ की आकृति थाल से बनती है, तो उससे तीनों चक्रों में ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह न केवल भगवान के प्रति समर्पण है, बल्कि आत्मिक और शारीरिक ऊर्जा का जागरण भी है।”
प्रमाण – शास्त्रों से संकेत
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शिव महापुराण (रुद्र संहिता) में भी उल्लेख है कि आरती चक्र स्वरूप होनी चाहिए, जिससे ऊर्जा का वृताकार प्रवाह बना रहे।
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स्कंद पुराण में कहा गया है:
“आरत्या च प्रदक्षिणा देवं तन्मयः स्याद् भवेद् ध्रुवम्।”
अर्थात, आरती करते समय घूर्णन (वृताकार) से देवता में मन स्थिर होता है और भक्त के भीतर दिव्यता उतरती है।
निष्कर्ष
श्रावण माह में शिव आराधना या किसी भी देवता की आरती करते समय हाथों की गति का विज्ञान समझें। केवल थाल घुमाना ही नहीं, बल्कि चक्रों को ऊर्जित करना ही सच्ची आरती है।
कृष्णा गुरुजी के शब्दों में:
“आरती वह दीप नहीं जो केवल जलाया जाए, वह वह ऊर्जा है जो भीतर के अंधकार को मिटा दे।”
👉 वीडियो देखें – आरती करने का सही तरीका (कृष्णा गुरुजी द्वारा)