कलयुग पुराण अध्याय : विषम परिस्थिति में संतुष्ट कैसे रहें

विषम परिस्थितियों में संतोष और धैर्य कैसे बनाए रखें? कृष्णा गुरुजी ने एक प्रेरक कथा के माध्यम से बताया — कर्म करते रहो, फल की चिंता छोड़ दो।

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शिष्य ने पूछा — “गुरुजी, विषम परिस्थिति में संतुष्ट कैसे रहें?”

कृष्णा गुरुजी ने उत्तर में एक कथा सुनाई —

ज्ञानचंद बहुत ही ईमानदारी से काम करता था।
मालिक ने तनख्वाह बढ़ाई — वही समर्पण।
तनख्वाह घटाई — वही समर्पण।
दो बार घटाई — वही समर्पण।

मालिक हैरान हुआ और पूछा — “तुम्हें फर्क क्यों नहीं पड़ता?”

ज्ञानचंद ने कहा —

“जब तनख्वाह बढ़ी — बेटी हुई — भाग्य से बढ़ी।
जब घटाई — पिता का निधन — उनका भाग्य चला गया।
फिर घटाई — माता का निधन — उनका भाग्य समाप्त।

मैं वही हूँ। मेरा कर्म और संतोष मेरे नियंत्रण में है।”

गुरुजी ने कहा —

“कलयुग में जो व्यक्ति परिस्थितियों को समभाव और संतोष से स्वीकारता है, वही शांत रहता है।
कर्म करो, फल पर आश्रित मत रहो। यही संतोष का मार्ग है।”

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